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सुलेमानी को मारकर ईरान को ही फायदा तो नहीं पहुंचा गए डोनाल्ड ट्रंप

Nafees Chouhan

रान ने बुधवार सुबह दावा किया कि उसने इराक के अल असद और इरबिल में मौजूद अमेरिका सैन्य अड्डों पर मिसाइल हमले किए हैं। कुछ देर बाद पेंटागन ने भी इन हमलों की पुष्टि की। न तो ईरान ने हमले में हुए नुकसान की जानकारी दी है और न अमेरिका ने जान-माल की हानि होने की बात कही है।ईरान इस हमले को पिछले हफ्ते अमेरिका के ड्रोन अटैक में अपनी कुद्स फोर्स के प्रमुख सैन्य अधिकारी कासिम सुलेमानी की मौत का बदला बता रहा है। वो सुलेमानी, जिन्हें ईरान में सर्वोच्च धार्मिक नेता आयतुल्लाह अली खामनेई के बाद दूसरा सबसे ताकतवर शख्स माना जाता था। वो सुलेमानी, जिनकी मौत पर पूरा ईरान एकजुट होता नजर आया।
सुलेमानी की मौत और ईरान के जवाब के बाद अब मध्य पूर्व में हालात और तनावपूर्ण हो गए हैं। ईरान और अमेरिका के बीच सीधा युद्ध छिड़ने की आशंका के बीच यह खतरा भी मंडराने लगा है कि क्षेत्र में अमेरिका के सहयोगी भी इससे प्रभावित होंगे। इस स्थिति का असर पूरी दुनिया पर पड़ सकता है क्योंकि विश्व की कुल जरूरत का एक तिहाई तेल मध्य पूर्व से ही आता है।जब से डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति बने हैं, तभी से उन्होंने ईरान के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाया हुआ है। शुरू से वह जोर देते रहे कि ईरान पश्चिमी देशों के साथ नया परमाणु समझौता करे। जब ईरान इसके लिए राजी नहीं हुआ तो अमेरिका 2015 में हुए इस समझौते से मई 2018 में बाहर निकल गया।

इसके बाद आर्थिक प्रतिबंधों, धमकियों, परोक्ष युद्ध का जो सिलसिला शुरू हुआ था, उसने आज दोनों देशों के साथ-साथ पूरी दुनिया में तनाव पैदा कर दिया है। अमेरिका की डेलवेयर यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर मुक्तदर खान बताते हैं कि दोनों देशों के बीच पिछले कुछ समय से एक तरह का युद्ध चल रहा है।

वह बताते हैं कि ये सिलसिला 1979 से शुरू हुआ है। ईरान मध्य पूर्व को स्थिर करने के लिहाज से अमेरिका के प्रमुख सहयोगियों में शामिल था। मगर 1979 में ईरान की इस्लामिक क्रांति के बाद अमेरिका से उसके रिश्ते बहुत खराब हो गए।
वैसे ईरान में अमेरिका विरोधी भावना तभी उपज गई थी जब ईरान में अगस्त 1953 में तख्तापलट हुआ था। मुक्तदर खान बताते हैं कि उस दौरान अमेरिका ने चार दिनों के अंदर प्रदर्शन करवाकर चुने हुए प्रधानमंत्री मोहम्मद मुसाद्दिक को हटाकर बादशाहियत लागू करवा दी थी यानी लोकतंत्र की जगह राजशाही स्थापित कर दी थी।
लेकिन इसके बाद जब इस्लामिक क्रांति हुई और मोहम्मद रजा पहलवी को सत्ता से हटाया गया, उसके बाद से लगातार अमेरिका पर ईरान में सत्ता परिवर्तन की कोशिशों को आरोप लगता रहा है।
प्रोफेसर मुक्तदर खान बताते हैं कि इसके अलावा ईरान-इराक जंग में अमेरिका ने इराक का साथ दिया, उससे भी रिश्ते खराब हुए। वह कहते हैं कि अमेरिका लगातार ईरान की राजनीति और सत्ता को बदलने की कोशिश कर रहा है जबकि ईरान की कोशिश है कि न सिर्फ मध्य पूर्व में अमेरिका के प्रभुत्व को खत्म करके बल्कि फलस्तीनी इलाकों से इस्राइल का नियंत्रण भी खत्म करे।
प्रोफेसर मुक्तदर खान बताते हैं कि वहीं से चलता आ रहा यह सिलसिला अब सुलेमानी की मौत तक पहुंच गया है। वह बताते हैं कि अमेरिकी अधिकारियों का अनुमान है कि जनरल सुलेमानी ने इराक में 1100 से 1700 के बीच अमेरिकियों को मरवाया है। यानी अमेरिका और ईरान के बीच शीत युद्ध नहीं बल्कि एक गुनगुना युद्ध चल रहा है।

Report :- Nafees Chouhan
Posted Date :- 09/01/2020

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